हम में से कईं लोगों को छोटी सी हरी हरी मुलायम दिखने वाली घास की हरी सतह पर खेलने और दौड़ने की यादें होगीं। लेकिन हम घास की मानवीय जीवन में व्यापकता के बारे में नहीं सोचते हैं। नाटक खेलने के लिए रंगमंच चाहिेए। मानव अपने जीवन का नाटक घास के बने हुए मंच पर खेल रहा है। हमारे रहने-सहने, खाने-पीने, में घास की कोई न कोई भूमिका ज़रुर होती है। चार स्वादिष्ट मीठी घासें गेहूं, मकई, चावल और गन्ना हमारे भोजन का आधे से ज्यादा हिस्सा मुहैया करती हैं।

अपनी पुस्तक Grasses में, स्टीफन हैरिस अंतिम हिम युग के अंत से लेकर आज तक घासों के साथ हमारे संबंधों के इतिहास की व्याख्या करते हैं। यह किताब जीव विज्ञान, समाजशास्त्र और सांस्कृतिक इतिहास को मिलाकर घासों और मनुष्यों की एक सुंदर कहानी कहती है। यह बताती है कि कैसे घासें किसी भी अन्य पौधे की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से मानव को प्रभावित करती है और उसके प्रभाव को सहन करती हैं।

पृथ्वी पर रहने वाले पशु पक्षियों की आपस में पुरानी जान पहचान है। सभी अलग अलग तरीकों से एक दुसरे को प्रभावित करते हैं। किसी पंछी की बीट किसी पौधे का भोजन बनती है तो कोई पौधा किसी जानवर का भोजन बनता है। जीवीत रहने के लिए सभी अपने शरीर को बदलते हैं। जानवरों से बचने के लिए घास मिट्टी में से सीसा निकाल कर अपने अंदर समाकर, अपने शरीर को धारदार बनाती है। मुलायम सी दिखने वाली घास असल में बहुत कठोर होती है। हज़ारों वर्षो की मेहनत के बाद घास ने खुद को ऐसा ताक़तवर बनाया है। हाथी जैसे बड़े बड़े जानवर घास के ऊपर से गुज़र जाते हैं। लेकिन घास मजबूती से फिर खड़ी हो जाती है। गाय  और घोङे जैसे जीवों को घास को पचाने के लिए खूब चबाना पड़ता है। जानवर भी घास पर पलटवार करते हैं। कठोर धारदार घास को चबाने के लिए उन्होने अपने जबङो को और मज़बूत बनाया। जवाबदेही में घास अपने अंदर ज़हरीले रस फैला दिये। जानवर इसकी काट के लिए अपने पेट में और हिस्से बनाये।

ऐसा भी नही कि पौधे और जानवर हमेशा लङते ही रहते हैं। वे एक दुसरे की मदद भी करते हैं। गाय का गोबर, घोङे की लीद घास को खाद देती है और उसके बीजों को फैलाती है।  घास के जैसी खट्टी मीठी दोस्ती जानवरों से है वैसी ही और तरह के जीवों से भी है, जैसे दूसरे किस्म के पौधे, फफूंद, जीवाणु और कीटाणु। यह जीव कईं बार घास के लिए खतरा साबित होते हैं और कईं बार मददगार। फफूंद घास को खाना बनाने में मदद करता है। इसी तरह पृथ्वी पर सहजीवन का नाटक होता रहता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार मानव ने कुछ ग्यारह हज़ार साल पहले खेती करना सीखा। जंगल के खतरों से बचने के लिए मानव मैदानो में आ बसा। उसने घासों के बीजो को बोना सीखा। अपने जीवन को बदला। घूमते रहने के बजाय एक जगह टिक कर रहना सिखा। घासों के दानो को अपने सेवन के लिए सह़ज बनाने में मानव को वक्त लगा।

नई ज्यादा फलदार फसलों के लिए, पुरानी फसलों में से सही बीजो का चयन करना ज़रूरी है। जंगली घासों में अपने बीजो को को जल्दी झाड़ देने की आदत होती है। किसानों ने कईं पीढ़ियां लगातार मेहनत करके गेहूं और अन्य घरेलू घासों में इस आदत को कम कर दिया है। मनुष्य ने जिस तरह घासों का चरित्र बदला, उसी तरह घासों ने भी मनुष्य का चरित्र बदल दिया। खेतों में उगे अनाज के दाने धीरे धीरे मुलायम होते गए। मानव के मुँह की रचना बदल गयी। दांत छोटे हो गए और जबड़े मुलायम। खेती से समय पर और ज्यादा मात्रा में भोजन मिलता है। जंगल में तो हमे घूम घूम कर खोजना पड़ता था।

लेकिन जब हम जंगलों में शिकार करके, कंद-मूल और फल खाते थे हमे ज्यादा पौष्टिक आहार मिलता था। खेती से मिलने वाले आहार में कार्बोहाइड्रेट तो प्रचुर मात्रा में होते हैं लेकिन प्रोटीन और विटामिन की मात्रा कम होती है। पोषक आहार न मिलने के कारण मानव में बीमारियों का खतरा बढ़ गया।

खेती बाड़ी ने इंसानो की जनसंख्या में कईं गुना इजाफा किया है। इसकी शुरुआत में (आज से लगभग बारह हजार साल पहले) मनुष्यों की जनसंख्या तीस से चालीस लाख के आस पास थी। ईसा मसीह जब धरती पर विचर रहे थे तब तक हमारी जनसंख्या सत्रह करोड़ हो गयी थी। आज हम आठ अरब लोग हैं।

घरेलू अनाजों की उत्पत्ति के प्रश्न ने इतिहासकारों और वनस्पति-वैज्ञानिकों को काफी विस्मित किया है। चुकीं यह फसंलें इंसानो के साथ साथ अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीको से विकसित हुईं इसीलिए इनके मूल पीकर जाना कठिन है। अनाजो के दुनिया भर में फैलने और प्रचलित होने में बीजों का संग्रह और संकरण महत्वपूर्ण है। भविष्य में आने वाले खाद्य संकटों से जूझने के लिए कईं देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, बीजों के बड़े संग्रहों को विशेष बैंको में सुरक्षित रखती हैं। वनस्पति वैज्ञानिक लगातार शोध करके बीजों को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए बीज संकरण करते रहते हैं। कईं लोग इन कृत्रिम तरीकों का विरोध भी करते रहते हैं। खास कर पर्यावरण, स्वास्थ और किसानों के अधिकारों के मुद्दों पर।

मानव ने खेती के लिए घास के बड़े बड़े मैदानो को बिगाड़ दिया। जहां कईं तरह की घास उगा करती थी वहां एक ही तरह की घास उगने लगी। दोसो साल पहले मानव ने मशीन से काम करना शुरू कर दिया। अब घोड़ो और बैलों के बजाय खेतो पर ट्रेक्टर चलने लगे। ज्यादा फसल उगाने के लिए केमिकल का इस्तेमाल शुरू हुआ। इससे जमीन और पानी धीरे धीरे ज़हरीले हो गए।

ज्यादातर घासें काम उपजायु जमीन पर उगने की आदि होती हैं। रासायनिक खाद के उपयोग से कईं प्रकार की घासें विलुप्त हो चुकी हैं। घास धरती की रक्षा करती है। उसकी जड़ें मिट्टी को बांधती हैं। मनुष्य ने अपनी मनोरंजक गतिविधियों के लिए भी घासों को साधा। खेल के मैदानो के लिए, बगीचों के लिए विशेष प्रकार की घासों का उपयोग किया जाता है।

भविष्य में आने वाली समस्याओं, खास कर जलवायु परिवर्तन से जूझने के लिए, मानवों को घास की मदद चाहिए। घास ताक़तवर जीव है।जैसे-जैसे दुनिया की आबादी बढ़ती है, हम घास पर अधिक से अधिक निर्भर होते जाते हैं। अगर सही तरीके से काम किया जाता है तो घासें मानवों के ऊर्जा संकट का समाधान हो सकती हैं। जैविक ईंधनों का प्रचलन बढ़ रहा है। इथेनॉल नामक जैविक ईंधनो फिलहाल सबसे प्रचलित है। इसे गन्ने और अन्य अनाजों से बनाया जाता है। लेकिन हमें चुनना पड़ेगा की घासों का मुख्य उपयोग क्या होगा: भोजन, ईंधन या औद्योगिक रसायन क्योंकि इस धरती पर उपजायु ज़मीन सीमित है।

अपनी पुस्तक Grasses में स्टीफन हैरिस जलवायु परिवर्तन की पृष्ठभूमि में हमारे और घास के सहजीवी संबंध का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मनुष्यों को भोजन के रूप में, रहने की जगह के रूप में, और संभावित रूप से ईंधन के रूप में भी घास की अपनी आवश्यकता को संतुलित करने का एक तरीका खोजना होगा। यह अच्छी तरह से सचित्र पुस्तक बागवानों, भोजन प्रेमियों और पर्यावरणविदों के पास होनी चाहिए।

अगर हम घास से दोस्ती करेंगे तो हमारा ही फायदा होगा। दुश्मनी निभाना तो घास को भी आता है। प्राचीन भारतीय कहानियों में राक्षसों और बुरे राजाओं को मारने के लिए ऋषि धारदार घास के तिनके का इस्तेमाल करते हैं। दुष्ट राजा वेन को मारने के लिए ऋषियों ने कुश घास का उपयोग करके अस्त्र बनाया था। महाभारत में, एक महान वंश ने, समुद्र के किनारे उगी धारदार घास से अपना ही विनाश कर डाला था।

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